Shri Dwarkadasji Rathi was famous for his ability to recite many jokes, anecdotes, stories and people loved having a conversation with him. Shri Kailashji Rathi has documented some of his jokes/anecodes.
१ . बूडा-बूडी री काणी :
एक बूडा-बूडी हा । बूडे ने खाणो खिळाणे री टेम बूडो बडी ने पूछतो, “हे ओ, थे कोनी जीमो?” बूडी जवाब देती, “नई ओ, म्हारी बापड़ी रो कई, म्हे पड़ी चूल्हे में”
यूँ रोज़ खाणो खाणे री टेम आइज बात हूती।
एक दिन बूडो सोचण लागियो, कईं बात है, आ खाणों खावे कोनी, और रोज कैवे, म्हारी बापडी रो कईं, म्है पड़ी चूल्हे में। और मोटी हूय रई है। देखां तो सई, कईं बात है। तो पछे बूडो खाणो खा ने आंखियां बंद करने सो गियो, पण नींद कोनी ली। बूडी देखिये के बूडो सो गियो है, जद चुपचाप ऊट ने रसोई में गई। बूडो भी घणो चालाक हो, लारे लारे वो भी ऊटियो ने चुपचाप रसोई में खिड़की सुं झाँकियों, तो कईं देखे के बूडी चूल्हे री राख बारे काडी, तीन बाटियाँ निकाळी, राख पूँछ ने वैने तोड़ी, बाटकी में रख ने ख़ूब सारो घी घालियो, और दाळ में चूर ने खावण ने बैठ गी। बूडो आ देख ने चुपचाप पाछो आ ने सो गियो।
दूजे दिन बूडी मिंन्दर ऊं पाछो आ ने जद खाणे री टेम हुई, तो बूडे ने पूछियो, ” हैं ओ, जीमो कंई”
बूडो जवाब दियों, ” नई ओ, आज म्हने भूख कोनी, आज तो महै बापड़ो पड़ गियो चूल्हे में।”
२ . राग भैरवी:
एक सेठजी हा। नगर सेठ। बोत सम्मानित नागरिक हा। नगर में कोई भी function हुवतो, तो वैने तो लोग ज़रूर ही बुलावता। वे भी धन सुं अच्छी सहायता करता।
एक बार वैने किणी संगीत रे कार्यक्रम में बुलायो। उणमें वैने एक गायक री गायकी बोत पसन्द आई। वे गायक ने पूछ लियो, ” थे कईं गायो”। गायक जवाब दियो, ” सा, आ राग भैरवी ही”। बात सेठजी रे मन में बैठ गी।
निरा दिना पछे फेर एड़ो ईज एक और संगीत रो कार्यक्रम हुयोऔर सेठजी ने भी निमंत्रण मिलियो। सेठजी कार्यक्रम में गया। रंग जद जमण लाग्यो, तो सम्मान राखण ख़ातिर गायक सेठजी ने पूछ लियो,” आपरी कोई ख़ास फरमाईश व्हे तो?” सेठजी बोल्या, ” राग भैरवी सुणाओ” । गायक देकियो ओ तो राग भैरवी गावण रो टेम कोनी, पण सेठजी रो मान राखण ख़ातिर एक राग भैरवी सुणाई। राग ख़तम होणे पछे गायक पूछ लियो,” किकर लागी सा?” सेठजी री की समझ में कोनी आई। इण गायकी रा बोळ पेली वाली गायकी सुं अलग हा। तो सेठजी कैयो, ” नई यार, राग भैरवी सुणावो”। गायक ने एक और बोळ वाली में राग सुणाई। राग खतम हुई तो गायक पूछियो, ” अबकी बार किकर लागी सा”। सेठजी रे फेर की समज में कोनी आई और बोल्या, ” भाई, राग भैरवी सुणाओ नी”। जद गायक बोल्यो, “सा, आ राग भैरवी इज तो ही” । तो सेठजी बोल्या,” ओ अच्छा, आ बी राग भैरवी ही कांई, जद तो बोत इज चोखी ही”।
३ . एक ब्राम्हण और एक राजपूत साथसाथ पैदल यात्रा कर रहे थे। ये उस ज़माने की बात है जब रेल औ बस नहीं थी। शाम होने पर एक गाँव के बाहर डेरा डाला और भोजन की व्यवस्था में लग गये। ब्राम्हण महाराज गाँव से साग सब्ज़ी, आटा, मसाले, वग़ैरह लेकर आए। राजपूत भाई बकरे का गोश्त मसालेदार बनाने के हिसाब से सामान और आटा वग़ैरह लेकर आए। दोनों खाना बनाने लगे तो ब्राम्हण देवता बोले, ” राजपूत भाई, आपकी तरफ़ से बड़ी ज़ोरदार ख़ुशबू आ रई है।” राजपूत बोले, ” महाराज चीज़ ही ऐसी है। खाकर देखोगे, तो पता चलेगा। ” ब्राम्हण बोले, ” नई भाई, म्हे थोड़ी खा सकां” ।जब दोनों खाना खाने बैठे, तो धामा धामी हुई। ब्राम्हण ने राजपूत को अपनी सब्ज़ी लेने के लिये कहा। राजपूत ने ब्राम्हण देवता का मान रखने के लिये थोड़ी सब्ज़ी लेली। तो राजपूत ने भी ब्राम्हण को पूछा, ” थोड़ा गोश्त लेंगे ?” ब्राम्हण ज़रा सकुचाये और कहा, नई नई, म्हे कठे खावां, पण खुसबू बोत ज़ोरदार इज आ रई ही, झोऴ चाखणें में कोई हर्ज कोनी। थोड़ो झोळ दे दो।” राजपूत झोळ देवण रे वास्ते देगची सूँ परोसण लाग्यो, तो झोळ रे साथे गोश्त रो टकरों भी आवण्टन लाग्यो। राजपूत उने कुरछी सो रोकण लाग्यो तो ब्राम्हण देवता कैवे, ” आपी आवे झिकन ने आवण दे, उने रोक मत, बाक़ी झोळ झोळ घाळ” ।
४. एक गाँव था। उसमें रहते थे एक लाल बुझ्झक्कड़ जी। गाँव की हर एक समस्या का हल उनके पास था। एक रात को उस गाँव में बरसात हुई और उसके बाद वहाँ से एक हाथी निकल गया। सबेरे गाँव वालों ने देखा कि रास्ते पर बड़े बड़े गोल गोल निशान बने हुए हैं। उन्होंने हाथी कभी देखा नहीं था इसलिये सब सोचने लगे, ये कौनसी नई विपदा आई है।सब बड़े परेशान। आख़िर लालबुझ्झक्कड़ जी को बुलाया गया। बड़ देर तक परिस्थिति का मुआयना करने के बाद लालबुझ्झक्कड़ जी ने अपनी सूझ बताई, ” लालबुझ्झक्कड़ बूझिये, और न बूझे कोय, पैर में चक्की बाँध के, हरिणा कुद्दा होय।”
५. एक सासूजी थी और उनके एक जंवाई थे। जंवाई अक्सर अपने ससुराल के गाँव में काम के सिलसिले से आते थे तो ससुराल में ही रुकते थे। इसी दौरान एक बार सासूजी ने जिज्ञासावश जंवाईजी से पूछ लिया, ” कंवरसा, थे कई काम करो?” कंवरसा ने भी एसे ही टालमटूलम का जवाब दिया, ” की नई माँ सा, एई छटे महीने दूणा करां”।
सासूजी कोई कम माया नहीं थी, चट से एक टका (उस समय के दो पैसे, एक रूपये में १६ पैसे) निकाल कर उनको दिया और कहा, ” ए लो, म्हारो भी एक टको जमा कर लो।” बात आई गई हो गई।
१६ साल बाद घर में कुछ मरम्मत का काम करवाना था और पैसों की ज़रूरत पड़ी। तो कंवरसा को याद किया ।कँवर सा तुरंत चले आए, बड़े आज्ञाकारी थे। सासूजी ने अपने मन की बात कही,”घर में मरम्मत करवानी है, ऊपर डागळे पर एक माळियो बणवावणो है, और भी कई काम है थोड़ा रूपया री दरकार है।” कँवर सा ने तुरंत कहा, ” हाँ हाँ, माँ सा, किता रूपया चईजे, मैं अबार इन्तज़ाम करूँ”। सासूजी बोली, ” कँवर सा, थाने याद है , १६ साल पेली म्हें थाने थाणे काम के बाबत पूछियो जद थे केयो कि हर छटे मईने दूणा करां, और म्है थाने कन्ने एक टको जमा करायो। ” कँवर सा स्वीकार कियो, ” हाँ माँ सा, याद है, बोलो, कई करणो है?” सासूजी केयो, ” अबे थे उण जमा रक़म रो हिसाब करदो।”
मालूम है वो हिसाब कितना हुआ? कंवरसा अपनी ज़िन्दगी में तो उसे चुका नहीं पाया।
उसे ५३,६८,७०,९१२ रूपये चुकाने थे। (उस समय रूपये में १६ पैसे या ८ टके होते थे।)